उसदिन सुबह ही मुल्ला नसीरूद्दीन का विवाह हुआ था। उसी रात वह अपनी पत्नी व संबंधियों के साथ नदी पार करने के लिए नाव में बैठ गया।
अचानक तेज तूफान आया नाव तेजी से डगमगाने लगी। नाव में नई दुल्हन व सभी रिश्तेदार घबरा गए परन्तु मुल्ला शांत रहे। पत्नी ने हैरानी से पूछा – ‘‘क्या आपको डर नहीं लग रहा ?’’
मुल्ला ने कोई जवाब दिए बिना अपनी जेब से खंजर निकाला और पत्नी के गले पर रख दिया मानों वह उसकी गर्दन काटने वाला हो। पत्नी के चेहरे पर कोई भाव नहीं आया। मुल्ला ने पूछा – ‘‘क्या तुम्हें डर नहीं लग रहा ?’’
पत्नी ने कहा -‘‘खंजर तो खतरनाक है पर मेरे प्यारे पति के हाथ में है इसलिए मुझे डर नहीं लग रहा।’’
मुल्ला ने कहा – ‘‘यह लहरें भी खतरनाक है पर इन्हें चलाने वाला मेरा प्यारा अल्लाह है इसलिए मुझे भी डर नहीं लग रहा।’’
ऐसा ही यदि हम सब इंसान अपने बनाने वाले ईश्वर या अल्लाह या गॉड पर भरोसा करलें तो हम सुकून की झील में तैरने लगे, हम स्वस्थ हो जाए, हम निरोगी होने का पासपोर्ट पा लें, हमारे जीवन से रोग, निराशा, कुंठा, चिंता हमेशा के लिए चली जाए और हमें परम आनंद प्राप्त हो जाए…यही तो हमारे जीवन और जीवन के हर कार्य का मूल है।
“आस्था ही हमें स्वस्थ करती है।” आस्था के सिवाय कोई दूसरी चीज है ही नही जो हमें आरोग्य प्रदान करे। मैं यह बात पूरी तरह से वैज्ञानिक और चिकित्सकिय द्रष्टिकोण से कह रहा हूँ। हां, यह आस्था ईश्वर पर हो सकती है, दवाई पर हो सकती है, चिकित्सक पर हो सकती है या स्वयं पर हो सकती है। अगर यह असत्य होता तो ऐसा कभी न होता कि एक ही दवाई का असर अलग अलग चिकित्सक द्वारा देने पर अलग अलग असर दिखाती। हमने कई लोगों से कहते सुना है कि मुझे तो उस डॉक्टर के अलावा किसी और चिकित्सक की दवाई असर ही नहीं करती। जैसे जैसे लोगों की आस्था किसी चिकित्सक में बढ़ती जाती है वह चिकित्सक प्रसिद्ध होता चला जाता है और लोगों को वह और अधिक आरोग्य प्रदान करता जाता है।
आस्था ईश्वर पर होना ही आस्था का सही मूल्य है। आस्था हर किसी पर रखना आस्था का अपमान है, यह तो सर्व शक्तिमान को ही शोभित होती है किसी तुच्छ के लिए नहीं। ईश्वर पर विश्वास करना और उसे अपनी हर समस्या का निराकरण करने वाला मानना ही आस्था है। जब हम उससे प्रार्थना या दुआ करते हैं तो वह सभी दुआ को क़ुबूल करके उसे पूर्ण कर देता है क्योंकि ईश्वर के लिए कुछ भी मुश्किल नहीं है। विश्वास करना किसी चीज को सच मानना या उसे स्वीकार करना है। यह एक शानदार आचरण है हमारे अवचेतन मन का कि हमारा चेतन और तार्किक मन जिसे भी सच मानता है यह भी उसे सच मानना शुरू कर देता है। हमें बस हमारे अवचेतन मन को यह प्रशिक्षण देना पड़ता है कि ईश्वर असीम शक्ति के साथ हमारे साथ सदैव उपस्थित है। महान इमर्सन का कथन यहाँ विचारणीय है- “प्रार्थना सर्वोच्च द्रष्टिकोण से जीवन का मनन है।”
आपका विश्वास कमज़ोर है तो वह आपकी प्रार्थना या दुआ का फलदायक नहीं होने देगा। दुआ का फल तब मिलता है जब हमारा विश्वास पहाड़ की तरह अटल और तठस्थ हो। जीवन का नियम विश्वास और आस्था का नियम है और यह विश्वास आपके मन का एक विचार है। जैसा हम सोचते, समझते, महसूस करते और विश्वास करते हैं, हमारा मन, शरीर और परिस्थितियां भी ठीक वैसी ही हो जाती हैं। यही वजह है कि प्रार्थना हमारे मन की परिस्थितियों को बदल देती हैं। प्रार्थना में असंभव जैसा कुछ भी नहीं होता क्योंकि प्रार्थना ईश्वर को सर्वशक्तिमान मानती है।
पुनःश्च- हाल ही में सोशल साइकोलॉजी एंड पर्सनालिटी साइंस के जर्नल में प्रकाशित एक शोध में बताया गया है कि धार्मिक लोग नास्तिक की तुलना में 5.5 से 9.5 वर्ष अधिक जीते हैं। यह रिसर्च कूल 1096 लोगों पर अमेरिका में की गई थी। धार्मिक व्यक्ति कई तरह के व्यसन, बुरे काम से तो बचा ही रहता है लेकिन सबसे बड़ा लाभ उसे होता है चिंता या तनाव का जीवन में अभाव। धर्म मानसिक शांति देने के मामले में सर्वोच्च स्थान पर है। धर्म हमें निराशा से बचाकर आशावादी बनाता है और यह सबसे पहली शर्त है किसी भी रोग से मुक्ति पाने की।