धरती के बढ़ते तापमान का सेहत पर असर

वह बसंत की एक दोपहर थी। मेरे अपॉइंटमेंट स्लॉट में आखरी जो रोगी थे वे दूर गांव के एक बुजुर्ग कैंसर रोगी थे। परामर्श लेने के बाद केबिन से जाते समय उनके बेटे ने उनसे कहा कि, “बाबा अभी ट्रैन में वक़्त है इसलिए चलो मैं आपको भोपाल घुमा देता हूँ, काफ़ी खूबसूरत और विकसित होगया है यह शहर, आपको अच्छा लगेगा।” उस पर उस रोगी ने जवाब दिया अपने बेटे को कि, “बेटा मेरे अंदर की दुनिया जब तक ठीक नहीं होगी ना तब तक बाहर का कुछ भी अच्छा नहीं लगेगा मुझे।” वह झकझोर देने वाले शब्द मेरे कानों में हमेशा गूँजते हैं। मैं जब भी दुनिया की सुंदरता को निहारता हूँ तो एक नज़रिया यह भी रखता हूँ कि मेरे रोगियों को भी क्या यह दुनिया इतनी ही सुंदर लगती होगी जितनी कि अभी मुझे लग रही है। बिना किसी व्यसन में पड़े मेरा वह मासूम रोगी क्रूर कैंसर के जाल में उलझ गया था, क्यों? उसे नहीं पता लेकिन मैं तो जानता था कि इसकी वजह हमारा खोखला विकास है जो प्रकृति को तहस नहस कर रहा है। हजारों तरह की तितलियों, अनगिनत वन्यजीवों और मधुमक्खी के विलुप्त होने पर आप यह बिल्कुल मत सोचिए कि यह विनाश आप तक नहीं आएगा। यह विनाश की बाढ़ या अंधड़ हम इंसानों को भी लील लेगा। हमारी तरक्की कृत्रिम सुंदरता को बढ़ा कर असली और नैसर्गिक सौंदर्य को तहस नहस कर रही है। बेतहाशा जंगलों की कटाई और उनके स्थान पर कांक्रीट के जंगलों के निर्माण तथा दिखावे की विलासिता ने हमें यह किस जानलेवा मुँहाने पर लाकर छोड़ दिया है! बाहरी दुनिया अच्छी किये बगैर हमारी अंदरूनी दुनिया ठीक हो ही नहीं सकती, क्योंकि जो ब्रह्मांड में है वही पिंड (शरीर) में है। आज हम बात करेंगे धरती के बढ़ते तापमान की।

2015 में ग्लोबल वार्मिंग पर यूनाइटेड नेशंस की हुई मीट में यह तय हुआ था कि सभी देश मिलकर धरती के बढ़ते तापमान को रोकने के लिए प्रयास करेंगे। औद्योगिक क्रांति के पहले की धरती से वर्तमान की धरती का तापमान औसतन 2℃ ज्यादा हो गया है। यह तापमान कितना जानलेवा साबित हो रहा है इसके लिए लंदन स्कूल ऑफ हाइजिन एंड ट्रॉपिकल मेडिसिन के रिसर्चर्स की टीम ने हाल ही में एक रिसर्च प्रकाशित की। टीम ने इस रिसर्च के लिए 23 देशों की 451 जगहों को चिन्हित किया जिनका कि सामाजिक और पर्यावरणीय ताना-बाना भिन्न था, उनके तापमान में हुए परिवर्तन भी भिन्न थे। फिर उन स्थानों का इतिहास देखा कि यहां भूतकाल में जब तापमान में वृद्धि नहीं हुई थी तब गर्मी की वजह से कितनी मृत्युएँ हुई थी। परिणाम बहुत ज्यादा चोकाने वाले थे कि जहां पर तापमान 3 से 4℃ तक बढ़ा था वहां गर्मी से होने वाली मौतों में .75 से 8% तक वृद्धि हुई थी। जो ठंडे देश या हिस्से थे वहां पर गर्मी के कारण मृत्युओं में ज्यादा इज़ाफ़ा नहीं देखा गया।

उपरोक्त रिसर्च हमें चेता रही है कि अब सभी देशों को सचेत हो जाना चाहिए इस महाविनाश को रोकने के लिए। मृत्युएँ अगर 8% से अधिक की दर से बढ़ रही हैं तो यह वाकई बहुत खतरनाक है, हम जैसे गर्म जलवायु और विकासशील देश के लिए।

ग्लोबल वार्मिंग से किड़नी की समस्या में बेतहाशा वृद्धि हुई है। तापमान अधिक होने से पसीना ज्यादा आता है और किड़नी की क्रियाविधि प्रभावित होती है। मूत्र का निर्माण कम होने से पथरी अब आम समस्या होती जा रही है। हृदय रोग, श्वास के रोग, कैंसर, ब्लीडिंग की समस्या भी कई जाने ले रही हैं जिसके लिए भी बढ़ा हुआ तापमान बहुत हद तक जिम्मेदार है। एक रिपोर्ट के अनुसार ग्लोबल वार्मिंग से मलेरिया और डेंगू जैसे जानलेवा रोग भी बढ़ें हैं। ग्लोबल वार्मिंग के चलते संक्रामक रोग में भी बहुत वृद्धि होगी क्योंकि पानी और खाद्य और ज्यादा प्रदूषित जो होते जाएँगे।

क्या आयुर्वेद इसके लिए कोई हल प्रस्तुत कर सकता है? इस सवाल का जवाब है कि हाँ, कुछ हद तक वह मानवता को बचा सकता है लेकिन बढ़ते तापमान को कम करना ही एक मात्र सच्चा और असरदार उपाय है। आयुर्वेद के अनुसार तापमान के बढ़ने से पित्त की वृद्धि होगी। ऐसे में हम पित्त शामक दवाओं से कुछ हद तक हमारे शरीर के कोमल अंगों को बचा सकते हैं। किड़नी, लिवर, हृदय और फेफड़ों के ठीक से कार्य करने के लिए पुनर्नवा, भुई आंवला, तुलसी, पुदीना, लौकी, एलोवेरा का रोज़ाना सेवन करें। पानी ज्यादा मात्रा में पिये। पानी को शुद्ध करने के लिए नींबू के रस की कुछ बूंदे डालकर थोड़ी देर बाद पिये जिससे पानी की कई अशुद्धियां नीचे बैठ जाएगी। निर्मली नामक औषधि के बीजों से भी पानी को शुद्ध किया जा सकता है और इसके द्वारा शुद्धि सदियों से की जाती रही हैं। प्रोसेस्ड फूड्स से बचें, कीटनाशकों से युक्त सब्जियों और अन्न की जगह ऑर्गेनिक का प्रयोग करें, शक्कर का सेवन कम करें क्योंकि नेकेड कैलोरी युक्त यह शक्कर पच कर पायरुविक एसिड बनाएगी और यह एसिड शरीर में एसिड का निर्माण करके अंगों को क्षत विक्षत करेगा… और सबसे बढ़कर ना पेड़ काटे और ना काटने दें। अंत में याद रखें कि हमें रहना इसी दुनिया में हैं, हम बेशक मंगल ग्रह पर पहुंच जाएं लेकिन जो रहने के लिए एक मात्र बेहतरीन जगह हमें कुदरत ने दी है उसे बर्बाद करके वहां पहुँचना तरक्की तो हो सकती है लेकिन समझदारी नहीं।

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