महाभारत के संजय से दो बातें सीखें हमारे पत्रकार
हिन्दू धर्मावलंबियों की सबसे पवित्र पुस्तकों में से एक गीता में महाभारत के युद्ध के दौरान श्रीकृष्ण द्वारा अजुर्न को दिये गए उपदेशों का संकलन है। श्रीकृष्ण द्वारा दिये गए इन उपदेशों को संजय द्वारा धृतराष्ट्र को बताया जाता है। संजय द्वारा बताए गए 700 श्लोकों को गीता में 18 अध्यायों में बांटा गया है। गीता में संजय के द्वारा कुरुक्षेत्र से श्रीकृष्ण और अर्जुन के वार्तालाप की रिपोर्टिंग कौरवों के राजा धृतराष्ट्र को सुनाई जा रही है। जिससे भारत को तीन योग कर्मयोग, भक्तियोग और ज्ञानयोग सीखने को मिले।
इस रिपोर्टिंग में दो बातें ध्यान देने योग्य हैं- एक तो यह कि संजय द्वारा अपनी तरफ से कुछ भी जोड़ा या घटाया नहीं गया था और दूसरा यह कि उन्होंने धृतराष्ट्र को बिना विचलित हुए या डरे जो सत्य था वह बताया। हमारे पत्रकार यदि यह दो गुण अपना लें तो वे इस देश को महान और आदर्श देश बना सकते हैं। पत्रकार सनसनी रच रहे हैं जिसमें सत्य कहीं पीछे छूट जाता है। वे खबरों में अपने विचार या विचारधारा और जोड़ देते हैं जो खबर को पूरी तरह नष्ट कर देता है। खबरों में जोड़ घटाव और एक विशेष एंगल से दिखाकर वे जज की भूमिका में आ जाते हैं और अपने फैसले सुनाने लगते हैं। प्रिय पत्रकार महोदय आप संवाददाता हैं जज नहीं। फैसला खबर को देखकर हम आम लोग लेंगे आप नहीं।
संजय के दूसरे गुण को भी पत्रकारों को आत्मसात कर लेना चाहिए कि शक्ति या शासक के सामने अविचलित रहें, बिना डरे और बिना लालच के सत्य दिखाएं। जैसा कि संजय अविचलित और बेख़ौफ़ हैं धृतराष्ट्र के सामने। शक्तियों के खिलाफ सत्य दिखाने से रोकने की दो ही तो वजह होती हैं- एक ख़ौफ़ और दूसरा लालच। सम्मानीय पत्रकार बंधुओ आप हमारे लिए पत्रकार बने हैं इन शासकों के लिए नहीं…यह सत्य अमानत है हम आम लोगों की। आप भी प्लीज़ संजय बन जाइये और हमें सत्य दिखाइए फिर हम आपको वह देंगे जो कोई भी सरकार नहीं दे सकती…हाँ सच्चे और महान पत्रकार की पदवी। और जब यह आपको मिल जाएंगे तो निःसंदेह आपको ईमानदारी से कमाया बहुत सारा धन भी मिलेगा ही। याद रखिए फ़िज़ा तो आपके खिलाफ है, आपके वजूद को खत्म करने के लिए सोशल मीडिया आ गया है लेकिन इतनी सारी फेक और सच्ची खबरों में अंतर करने के लिए हमें और ज्यादा सच्चे पत्रकारों की ज़रूरत पड़ेगी। क्योंकि जौहरी की ज़रूरत तब सबसे ज्यादा महसूस होती जब नकली हीरों के ढेर में से असली हीरा चुनना हो। लेकिन अगर आप अपने प्रोफेशन के प्रति ईमानदार नहीं रहे तो पत्रकारों की विलुप्ति की वजह आप भी होंगे। अहमद फराज़ का यह शेर आप चाहें तो अपने नोटिस बोर्ड पर या अपने वॉलेट में लिखकर रख लें-
मेरा कलम तो अमानत है मेरे लोगों की,
मेरा कलम तो अदालत मेरी ज़मीर की है।
इसीलिए तो जो लिखा तपा के जां से लिखा,
तभी तो लोच कमान की, ज़ुबान तीर की है।