काम को थोड़ा ब्रेक देकर लीजिए प्रकृति की शरण
रोज़ाना की दौड़ती भागती ज़िन्दगी। ऑफिस से घर, घर से ऑफिस, दुकान से घर, घर से दुकान….. ओफ्फोह क्या यही जीवन है? अगर यही है तो फिर बोर होना लाज़मी है, लाज़मी है आपका दुःखी रहना, लाज़मी है आपका डिप्रेस हो जाना। थोड़ा सा रोज़ाना या हफ़्ते में अपने लिए वक़्त निकालिये। अपने घर के पास अगर नदी हो तो वहाँ जाइये और और सुनिये उसकी कलकल बहती धारा का संगीत, अपने कानों में घोलिये उस संगीत का रस और अपनी आंखों में समाने दीजिये उस खूबसूरत मंज़र का रंग। अगर आपके घर के पास समंदर हो तो उसके किनारे बैठिये और सुनिये उसकी लहरों की गड़गड़ाहट और उससे मिलाइये अपने दिल की धड़कनों को, फिर देखिये एक नई ऊर्जा का संचार होगा आपके दिल से मस्तिष्क तक। गहरी सांस लीजिए। उसके किनारे बैठकर उसकी रेत पर अपनी उंगलियों से तस्वीर बनाइये, कोई भी, किसी की भी। तस्वीर बनाना नहीं आती हो फिर भी। देखिए यह आपको कितना आनंद देगी। फिर गहरी सांस लीजिए। दूर किसी पहाड़ी की चोटी पर जाइये और देखिए सूरज को ढलते हुए। उसकी लाल सुनहरी मंद किरणों को अपनी आत्मा से मिलने दीजिये, मुंह को बंद रखकर नाक से किसी गीत के सुर का गुंजन कीजिए। ये भंवरों का सा गुंजन आपको शांति दे रहा होगा। फिर गहरी सांसें लीजिए। उगते सूरज को निहारिये कभी। उसकी ऊर्जा को समाने दीजिये अपने तन मन में। इस सुंदर और अद्भुत तरंगों से भरे दृश्य को देखते हुए भी गहरी सांसें लीजिए। क्या आपको इस समय भी ऑफिस, काम, दुकान, मोबाइल फोन या ईमेल चेक करना याद आ रहा है? तो फिर गहरी सांसें लें, फिर से लें। तब तक गहरी साँसे लेते रहें जब तक कि आपके मन को, आपकी आत्मा को यह ज्ञान ना हो जाए कि आपका यहां रहना आपकी सर्वोच्च प्राथमिकता है। यही आनंद है। यही शांति है। यही सत्य है। यही सत्य का ज्ञान है। आपका काम काज, आपकी नौकरी, आपका ऑफिस, आपकी दुकान आदि केवल जीवन जीने के माध्यम हैं जीवन नहीं। जीवन तो यह है जो आप अभी कर रहे हैं… आनंद और शांति प्राप्ति के कार्य।